अंतर्देशीय जल परिवहन (आई डब्ल्यू टी)  स्कन्ध  राष्ट्रीय जलमार्गों  (रा.ज.) में विकास, प्रबंधन, क्षमता निर्माण के कार्यान्वयन और संस्थागत सुदृढ़ीकरण पहलों के लिए उत्तरदायी है। वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार इस स्कन्ध  के प्रमुख हैं, जिन्हें निदेशक (आईडब्ल्यूटी), दो अवर सचिवों और आई डब्ल्यू टी अनुभाग द्वारा कार्य सहायता दी जाती है।

भारत में नदियों, नहरों, बैकवाटर और खाड़ियों के रूप में अंतर्देशीय जलमार्गों का एक व्यापक नेटवर्क है। विकसित देशों की तुलना में देश में जलमार्गों द्वारा माल परिवहन बेहद कम है। भारत की पश्चभूमि संपर्कता मुख्य रूप से सड़क और रेल पर आधारित है, जहां घरेलू जलमार्गों - तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जलमार्ग, दोनों – की एक सीमित भूमिका ही है। जलमार्ग लागत प्रभावी होने के साथ-साथ माल परिवहन के पर्यावरण अनुकूल साधन भी हैं। भारत में, अंतर्देशीय जल परिवहन (आई डब्ल्यू टी ) में भारी बोझ वाले रेलवे और भीड़भाड़ वाले सड़क मार्गों  का  पूरक बनने की क्षमता है। कार्गो आवागमन  के अलावा, आई डब्ल्यू टी सेक्टर संबंधित गतिविधियों जैसे वाहनों की ढुलाई {ऑनरोल-ऑन-रोल-ऑफ (रो-रो) क्रॉस फेरी मोड } और पर्यटन के  क्षेत्र में एक सुविधाजनक कार्य प्रदान करता है।

 

राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 द्वारा  देश में 111 अंतर्देशीय जलमार्गों को ‘राष्ट्रीय जलमार्ग ’(रा.ज.) घोषित किया गया है, ताकि उन पर पोत  परिवहन  और नौचालन  को बढ़ावा दिया जा सके। देश में 24 राज्यों में फैले हुये राष्ट्रीय जलमार्गों(रा.ज.) की कुल लंबाई 20,275 किलोमीटर है।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आई डब्ल्यू ए आई), एक स्वायत्त संगठन है, जिसका गठन भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत दिनांक 27 अक्टूबर, 1986 को किया गया था। आई डब्ल्यू ए आई मुख्य रूप से उन जलमार्गों के विकास, रखरखाव और नियमन के लिए जिम्मेदार है, जिन्हें राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के तहत रा.ज. घोषित किया गया है। । आई डब्ल्यू ए आई का मुख्यालय नोएडा, उत्तर प्रदेश में है। आई डब्ल्यू टी  स्कन्ध  द्वारा जारी किए गए नीतिगत दिशानिर्देश और निर्देश आई डब्ल्यू ए आई  द्वारा कार्यान्वित किए जाते हैं।

राष्ट्रीय जलमार्गों की सूची

पोत परिवहन मंत्रालय की राष्ट्रीय जलमार्गों की मुख्य पहलें     

सिक्किम सहित पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अंतर्देशीय जल परिवहन (आई डब्ल्यू टी) क्षेत्र के लिए केंद्रीय क्षेत्र (सी एस) योजना का ब्योरा